हरियाणा में 2019 का रुख तय करने वाले जींद के उपचुनाव में कौन-कौन लड़ रहा है?

हरियाणा में 2019 का रुख तय करने वाले जींद के उपचुनाव में कौन-कौन लड़ रहा है?



जींद विधानसभा उपचुनाव के मुख्य उम्मीदवार.
हरियाणा में 28 जनवरी को होने वाला जींद विधानसभा का उपचुनाव खूब चर्चा में हैं. सभी पार्टियों ने अपने-अपने कैंडिडेट घोषित कर दिए हैं. नामांकन भी हो गए हैं. और अब सभी पार्टियां इस सीट पर जान लगाने में जुटी हैं. ये उपचुनाव यहां से विधायक रहे डॉ. हरिचंद मिड्ढा की मौत के बाद सीट खाली होने के कारण हो रहे हैं. मिड्ढा 2009 से लगातार इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) के टिकट पर विधायक थे. लोकसभा चुनाव से पहले मुख्य राजनीतिक पार्टियां इसे सेमीफाइनल के तौर पर देख रही हैं. इस उपचुनाव में हार-जीत जनता का मूड तय कर सकती है. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. तो आपको बताते हैं इस उपचुनाव में लड़ रहे कैंडिडेट्स के बारे में.
1. रणदीप सुरजेवाला, कांग्रेस
 
रणदीप सुरजेवाला, कैंडिडेट कांग्रेस.

रणदीप कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. हरियाणा कांग्रेस में अहम स्थान रखने वाले सुरजेवाला हरियाणा के जाने माने नेता शमशेर सिंह सुरजेवाला के बेटे हैं. 2009 में हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में बनी सरकार में वो ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर रह चुके हैं. हरियाणा कांग्रेस में उनका उभार तब हुआ जब नरवाना विधानसभा से उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को हराया था. ऐसा माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व के आदेश पर उन्होंने जींद विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जींद को एक चुनाव से ज्यादा नाक की लड़ाई माना जा रहा है. जींद से आखिरी बार 2005 में मांगेराम गुप्ता कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. इसके बाद 2009 से हरिचंद मिड्ढा ही चुनाव जीतते आ रहे थे. जींद में कांग्रेस ने अपनी वापसी के लिए सुरजेवाला पर दांव खेला है.

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सोशल मीडिया पर आक्रामक रहने वाले रणदीप ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भी एक उपचुनाव से ही की थी. 1993 में नरवाना में हुए उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ लड़ाया. वो ये चुनाव हार गए, लेकिन अगले कुछ सालों में उन्होंने ये हिसाब बराबर कर लिया. सुरजेवाला ने ओमप्रकाश चौटाला को दो बार, 1996 और 2005 में विधानसभा चुनाव हराया. 2005 में नरवाना का चुनाव जीतने के बाद वो भूपेंद्र हुड्डा सरकार में सबसे जवान मंत्री बने. फ़िलहाल वो कैथल विधानसभा सीट से विधायक हैं. रणदीप सुरजेवाला हरियाणा कांग्रेस में चल रही वर्चस्व की लड़ाई को ख़त्म करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
2. दिग्विजय चौटाला. जननायक जनता पार्टी
दिग्विजय चौटाला, जन-जन पार्टी के उम्मीदवार.

जींद उपचुनाव में जिस एक नाम की खूब चर्चा है, वो है दिग्विजय चौटाला. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पोते और हिसार से सांसद दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय पिछले कुछ समय से चुनावी मोड में थे. सोशल मीडिया, प्रिंट और टीवी माध्यम से लगतार अपनी पार्टी का प्रचार करते रहे हैं. अपनी पुरानी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से अलग होकर अपने भाई सांसद दुष्यंत चौटाला के साथ जन-जन पार्टी में आए हैं. इनेलो में रहते हुए वह पार्टी के स्टूडेंट विंग इनसो(इंडियन नेशनल स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन) का कार्यभार संभालते थे. इसी लिए युवाओं के बीच काफी पॉपुलर हैं.

जन-जन पार्टी को बनाने और विस्तार करने के मामले में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में दिग्विजय ने जमकर पसीना बहाया है. दिग्विजय लंदन में लॉ कर रहे थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भिवानी सीट पर प्रचार करने के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिहाज से ये चुनाव दिग्विजय के लिए अहम होने वाला है.
3. उमेद रेढू, इंडियन नेशनल लोकदल
उमेद रेढू, इनेलो के उम्मीद्वार.

इस चुनाव में इनेलो ने सबसे आखिर में अपने पत्ते खोले. ठेकेदार उमेद सिंह रेढू जींद विधानसभा के लिए पार्टी के प्रत्याशी हैं. रेढू ने पहले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर परचा भरा, लेकिन बाद में इनेलो को समर्थन दे दिया. फिर पार्टी के पुराने नेताओं ने मीटिंग करके रेढू को इनेलो से चुनाव लड़ने के प्रस्ताव दिया. पार्टी के सभी धड़ों को खुश करने के बाद अंततः उमेद रेढू के नाम पर सहमति बनी. उमेद सिंह रेढू जींद जिला परिषद् के वाइस चेयरमैन हैं. जाट आरक्षण के दौरान काफी सक्रिय रहे थे जिसके चलते वहां के जाटों के बीच उनकी अच्छी पकड़ है. अपने जाट वोट कार्ड खेलने के चलते इनेलो को रेढू ही उचित उम्मीदवार नज़र आए.
4. कृष्ण मिड्ढा, भारतीय जनता पार्टी
भाजपा कैंडिडेट, कृष्ण मिड्ढा.

कृष्ण मिड्ढा, हरिचंद मिड्ढा के बेटे हैं. अपने पूर्व विधायक पिता की तरह वो भी इनेलो में शामिल थे, लेकिन बस 2 महीने पहले ही इनेलो छोड़ भाजपा में शामिल हो गए. जींद में काम कर रहे पुराने भाजपाई उनसे इस बात को लेकर खार खाए हुए हैं कि उनकी इतने सालों की मेहनत पर कृष्ण मिड्ढा ने कुछ महीनों में पानी फेर दिया. ऐसा अंदेशा है कि भाजपा में कृष्ण के बढ़ते कद को देखते हुए भितरघात कि संभावना है. कृष्ण मिड्ढा को टिकट दिए जाने पर भाजपा के प्रदेश सचिव जवाहर सैनी भी नाराज़ हो गए. सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में उन्होंने कहा कि वो 32 साल से पार्टी की सेवा कर रहे हैं. लेकिन 2 महीने पहले वाले उनपर भरी पड़ रहे हैं. जवाहर ने पूछा कि उनका क्या दोष है? जींद विधानसभा सीट पर भाजपा आज तक जीत दर्ज नहीं कर पाई है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भी मोदी लहर के बावजूद यहां से भाजपा के कैंडिडेट सुरेंदर सिंह बरवाला करीब 2300 वोट से हार गए थे. जींद में आजतक 5 बार कांग्रेस, 4 बार लोकदल के कैंडिडेट चुनाव जीते हैं. ऐसी अटकलें थीं कि भाजपा ने मांगेराम गुप्ता को भी एप्रोच किया गया था. जो जींद से तीन बार विधायक रह चुके हैं. पर बात बनी नहीं.
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