कौन हैं ये शबनम जो भारत की पहली फांसी की सजा पाने वाली महिला हो सकती हैं।
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बाएं - शबनम की वारदात के दिन की तस्वीर, दाएं - शबनम की तब की तस्वीर जब वो गिरफ्तार की गई थी. |
15 अप्रैल 2008 उत्तर प्रदेश के अमरोहा डिस्ट्रिक्ट का गांव बावनखेड़ी। एक लड़की रात को जोर जोर से चीखती है , उसकी चीख पुकार सुनकर आस पास के लोग वहा जमा होते है , और वहा का नजारा देख के दंग रह जाते है ,
अंदर लाशो का ढेर पड़ा है , कुल 7 लाश
जिन्दा बची हैं तो सिर्फ 25 साल की एक लड़की जिसका नाम शबनम हैं,
मरने वालो में शबनम के पिता - माता , शबनम के दो भाई , उसकी भाभी , मौसी की लड़की और शबनम का भतीजा
अब आप सोच रहे हो ये सब इतना पुराना हैं तो हमें क्यों बता रहे हो , रुकिए जनाब अभी पूरा मामला तो जान लीजिये।
तो क्या है पूरा मामला -----
दरअसल जिन्दा बचने वालो में अकेली शबनम ही नहीं थी , कोई और जो जिन्दा था , और वो था शबनम के पेट दो महीने का बच्चा।
इस घटना के चलते इतनी घुप्प रात में उस गांव में हो हल्ला मच गया , मिडिया से लेकर पुलिस तक , नेता सब पहुंच जाते है , अब बारी आती है काना फुंसी की , लेकिन काना फुंसी में अनुमान के सिवा कुछ नहीं होता है , अगर होता है , सिर्फ और सिर्फ अनुमान वो सच कम , बहुत कम। लोग बस इतना जानते है की कुछ बुरा हुआ है , बहुत बुरा हुआ हैं जो इस गांव को हमेशा के लिए बदल के रख देगा।
उधर शबनम पछाड़ कहते हुए , इस रात की घटना सबको बताती है की कैसे लुटेरों ने उसके सभी घर वालो को मार डाला , वो इसलिए बच गयी क्युकी वो बाथरूम में थी।
एक तरफ पुलिस उन लुटेरों की खोजबीन में लग जाती है और तफ्दीस , कॉल डिटेल , तथा पोस्ट मार्टम करवा लेती है , पुलिस की जाँच से सामने निकल के आता है इन कत्लो का घिनोना सच।
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ये केस इतना हाई प्रोफाइल बन गया था कि अगले दिन खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री, मायावती शबनम से मिलने और उसे सांत्वना देने आईं. |
सच क्या था। ..... ?
पुलिस ने तफ्तीश में जाना की वो लुटेरे नहीं थे जिन्होंने शबनम के परिवार का क़त्ल किया। क्युकी सबसे पहले तो मृतकों द्वारा खुद को बचाने को कोई प्रयास नहीं किया गया , दूसरा कारण लूट- पाट , तो घर कुछ भी ऐसा नहीं पाया गया था की कोई लूट पाट हुई हो ,
और हां पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये भी पता चला की मृतकों की हत्या करने से पहले उन्हें बेहोशी की दवा या कोई जहर भी दिया गया था।
तो ... ?
तो , क़त्ल करने वाला घर का कोई सदस्य था जिसने तसल्ली बख्श इस घटना को अंजाम दिया था , शक की सुई शबनम पर आके तिकी , साथ ही शबनम की कॉल डिटेल भी इस तरफ इसारा कर रही थी , खून वाली रात उसकी एक नम्बर पर कई बार बात हुई थी , खून हो जाने के बाद भी शबनम की उस नम्बर पर बात हुई , एक और बात थी जो पुलिस को बाद में पता चली शबनम दो महीने से पेट से थी , जबकि उसकी शादी नहीं हुई थी , लेकिन ये सब कमजोर सबुत थे ,
क़त्ल करने के लिए यूज़ किये गए हथियार , कहाँ से आये , कहाँ गए , कोई गवाह नहीं।
अब पुलिस के पास एक ही चारा था कड़ी पूछताछ सो करी , और जो उसने बताया उसके बाद आज पुरे गांव में ग्यारह वर्ष में कोई भी अपनी लड़की का नाम शबनम नहीं रखता हैं।
आखिर क्या थी कहानी जिसके लिए शबनम को क़त्ल का सहारा लेना पड़ा .... ?
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सलीम |
इस अविश्वश्नीय कहानी की शुरुआत हैं शबनम और सलीम के बीच बेइंतहा प्रेम से
लेकिन दोनों के परिवारों को खास तौर पर शबनम के परिवार को ये रिश्ता मंजूर नहीं था , तो शबनम और सलीम ने मिल कर प्लानिंग करके शबनम के 7 घर वालो को मोत के घाट उतर दिया , रात को जिस नम्बर पर शबनम लगातार संपर्क में थी वो शख्श सलीम ही था।
सोचिए ये केसा प्रेम का कुरूप चेहरा था की एक दो माह की गर्भवती ने 8 माह के नवजात की जान ले ली।
ये खबर आज क्यों पढ़ा रहा हु ... ?
आज शबनम जेल हैं और अपनी फांसी की संजा का इंतजार कर रही है सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के द्वारा दी गयी उसकी फांसी की सजा को बरक़रार रखा था , उसके बाद राष्ट्रपति के पास भी दया याचिका लगायी थी , उसको भी राष्ट्रपति ने ख़ारिज कर दिया।
ये स्टोरी हमने आज आप लोगो के सामने इसलिए लेके आये हैं की दोनों ने अपनी रिव्यु पिटीशन फाइल कर राखी हैं , अब कुछ दिनों में फैसला आने वाला हैं।
उधर जो उसके पेट में दो महीने का बच्चा था वो बड़ा हो गया है. दस साल का. मुस्लिम धर्म के गोद लेने को लेकर कोई नियम तो नहीं है लेकिन वो लड़का इस वक्त एक पत्रकार के पास है.
हमने उन पत्रकार की और उनके परिवार की पहचान जानबूझकर छुपाई है ताकि बच्चे के भविष्य में इन बातों का ग़लत असर न पड़े. तब जबकि इन सब में उसका कोई दोष नहीं है. वो तो दरअसल इस घटना का आठवां विक्टिम है. वैसे वो पहले सात साल शबनम के साथ ही जेल में पला-बढ़ा लेकिन फिर भी उसे आज तक शबनम और उस रात के बारे में कुछ भी पता नहीं है.
शबनम के लड़के को परवरिश के लिए एक अच्छा परिवार मिलना उसके द्वारा किए गए एक अच्छे कर्म का ही फल कहा जा सकता है. दरअसल जिस पत्रकार की हम बात कर रहे हैं उसके पास जब ट्यूशन फीस के पैसे नहीं होते थे तो शबनम ने कई बार उसकी मदद की थी. शबनम के एहसान को चुकाने का इससे प्यारा तरीका और कुछ नहीं हो सकता.
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